संस्कृति और विरासत
- सारंगढ़ का नामकरण – सारंग शब्द के अनेक अर्थ पर्यायवाची है जिनमें एक अर्थ बांस भी होता है यहाॅ इसकी प्रचुरता के कारण सारंगढ़ कहलाता है। गढ़ का अर्थ किला या किले नुमा भूमि है। पंड़ित लोचन प्रसाद पाण्डे-इसका अर्थ चिमय मृग के बहुतामय से मिलते है से लिया। डाॅ0 विनय कुमार पाठक सारंग पक्षी की बहुलता से नामकरण बतलाते है।रियासत कालीन इतिहास-सारंगढ़ रतनपुर रियासत का शुरु में हिस्सा रहा बाद में 18 गढ़ सम्बलपुर के अधीन रहा। रतनपुर के राजा नरसिंह देव के नरेन्द्र साय ( गोड़ वंश )को 84 गाॅव का सारंगढ़ परगना दिया और दीवान की उपाधि दी। वे सर्वप्रथम सारंगढ़ के निकट ग्राम गाताडीह में आकर कुछ समय तक रहें, फिर उन्होंने सारंगढ़ नगर को बसाया। कालांतर में वे सारंगढ़ के जमींनदार बने। भटगाॅव, बिलाईगढ़ अलग रियासतों की जमींनदारी रही। डोंगरीपाली सरिया बरमकेला का क्षेत्र सारंगढ़ के अधीन अलग जमीनदारी रहीं। यहाॅ के राजा कल्याण साय (गोड़ वंश) सन् 1736 से 1777 तक राज्य किये जिन्हे मराठा शासक ने राजा की पद्वी से नवाजा गया। अंग्रेजी सेना के विरुद्व या द्वारा पारित वाद को सुनने व निर्णय का अधिकार दिया। राजा जवाहर को बहादुर की उपाधि भी प्रदान की गई क्षेत्र में अशांति व विद्रोह को दबाया।
- क्षेत्र के प्रमुख शासक-कल्याण साय को मराठा रघुजी भोसले ने राजा घोषित किया। विश्वनाथ साय को सम्बलपुर राजा जैतसिंह ने राजगद्दी में सहयोग पर सरिया परगना भेंट किया गया।
- इलियट को समाधि – विश्वनाथ साय ने पोस्टल कारिडोर की खोज/निर्माण करने आए तथा फुलझर (सरायपाली) में डेंगू मलेरिया से मृत एलेक्जेंडर इलियट की समाधि बनाने हेतु (सालर, सारंगढ) में भूखण्ड प्रदान किया। जो खण्डहर के रूप में लात के किनारे भगन्नावशेष है। वर्षों तक उसकी देखभाल की गई व उनके रिश्तेदार आते रहे।
- राजा संग्राम सिंह – 1857 में ब्रिटिश शासन का सहयोग किया एवं विद्रोह दबाने के लिए विद्रोही नेता कमल सिंह को बंदी बनाकर ब्रिटिश सरकार के सुपुर्द किया।
- डाॅ0 जवाहर सिंह– 03 जून 1918 को ब्रिटिश सरकार ने ‘राजा बहादुर‘ एवं 03 जून 1934 को (सी. आई. ई.) की उपाधि दी। अंग्रेजी शासन के द्वारा ‘‘रूलिंग चीफ‘‘ के उपाधि पाने वाले राजा थे। ऐसा उपाधि व शक्ति जयपुर के महाराजा के पास भी नहीं थी।
- राजा नरेश चंद्र सिंह– 01 जनवरी 1948 को सारंगढ़ रियासत का भारत संघ में विलय हुए जिस पर राजा नरेश चन्द्र सिंह ने सहर्ष हस्ताक्षर किये। रूस्तम जी बतलाते हैं कि ये एक ऐसे राजा थे जिन्हें राज्य जाने की दुःख की अपेक्षा भारत संघ के निर्माण की खुशी थी। मंत्री (1967) से मुख्यमंत्री 13 मार्च 1969 से 25 मार्च 1969 तक रहकर(13 दिन) और अंत में समाज सेवा में रूचि रखकर राजनैतिक जीवन से सन्यास ले लिए एवं जीवन पर्यन्त समाज सेवा एवं आदिवासियांे के विकास के लिए संकल्पित एवं आजीवन भारत के आदिवासी समाज के अध्यक्ष रहें। इसकी पुत्री कमला देवी सिंह व रजनीगंधा देवी सिंह विधायक एवं कैबिनेट मंत्री रहे। मा0 पुष्पा देवी सिंह 03 बार सांसद रहीं। मेनका सिंह (डाॅक्टर) समाजसेवी है।
- पुरातात्विक महत्व-1. पाषाण काल – बम्हनदेई की सुरंगनुमा गुफा में पाषाण कालीन इत्यादि मानवों द्वारा निर्मित भित्ती चित्र, शैलचित्र के नष्टप्राय अवशेष (सारंगढ़ से 5 कि.मी.)
- सातवाहन कालीन– शून्य वाद के प्रतिपादक एवं महायान बौद्व भिक्षु नार्गाजुन के आश्रम सिरपुर के समान शैल कलाकृति सिरोली डोगरी (सारंगढ़ से 05 कि.मी.) में छत (सिलिंग) पर पैरों के निशान देही भग्नावशेष है। जिससे कुछ समय यहाॅ नार्गाजुन के दल के विश्राम की अनुमानित है।
- कलचुरी मराठा- कौश्लेश्वरी मंदिर कोसीर।
- मौर्यकाल– मौर्यकालीन व गुप्तकालीन सिक्के तथा शिल्पकला के अवशेष (पुजेरीपाली) ग्राम पंचायत- कान्दुरपाली व अन्य सारंगढ़ जिले के क्षेत्र में मिले है।
- द्वितीय विश्वयुद्व व सारंगढ़- सारंगढ़ की हवाई पट्टी जिल्दी पट्टी द्वितीय विश्व युद्व की स्मारक है यहाॅ अमेरिकी बमवर्षक विमान ईधन भस्में को उतरा करते थे। यह देश के सर्वोत्तम हवाई पट्टी में तकनीकी पैमाने पर थी।
- गिरी विलास पैलेस– राजपरिवार का पैतृक निवास स्थान (महल) रहा है। जो आज भी ऐतिहासिक दर्शनीय है।
- सर्वश्रेष्ठ गोल्फ कोर्स– वर्तमान खेलभाठा का मैदान रियासत काल में छ0ग0 मध्यप्रांत का श्रेष्ठ गोल्फ कोर्स होने से अंग्रेज अधिकारी यहाॅ खेलने आते थे।
- भारत के सुप्रसिद्व संत व समाज सुधारक– सतनाम पंथ के संस्थापक बाबा गुरु घासीदास जी की ज्ञान स्थली सारंगढ़ जिला – सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (निकट कोसीर ग्राम) को माना जाता है। ष्मनखे-मनखे एक समानष् के संदेशवाहक की भूमि है।
- महत्वपूर्ण संस्कृति पर्व दशहरा गढ़ विच्छेदन– शारदीय नवरात्र उपरांत दशहरा के त्यौहारमें सारंगढ़ का ऐतिहासिक गढ़ विच्छेदन की परम्परा है। इसमें लगभग 10 हजार से 20 हजार लोग स्थल पर मौजूद होते हैं। इसमें मिट्टी के शंकुनुमा आकृति में राजमहल की मिट्टी से (वीरभूमि) एक इंची आकृति बनती है। जिसमें प्रतिभागी चढ़ते, फिसलते गिरते व फिर से चढ़ते है। जो प्रतिभागी सबसे पहले उपर चढ़ने में सफल होता है, उन्हें नगद राशि एवं शील्ड से सम्मानित किया जाता है। रियासत कालीन चली आ रही परंपरा का निर्वहन आज भी राज परिवार के द्वारा किया जाता है। वर्तमान में पुष्पा देवी सिंह है। पहले बहादुरों को राजा की सेना में भर्ती किया जाता था।
- गणतन्त्र मेला सारंगढ़-प्रत्येक वर्ष 26 जनवरी जवाहर भवन के सामने गणतन्त्र मेला मैदान में विष्णु यज्ञ मेला 07 दिवस तक संचालित होता है। यह 26 जनवरी 1950 से लगातार होने वाला आयोजन है जो राजपरिवार के द्वारा आयोजित कियाा जाता है। इसमें स्थित जवाहर भवन का शुभारंभ भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाॅ0 राजेन्द्र प्रसाद जी के द्वारा हुआ था। यहाॅ के यज्ञ भभूति को ले जाकर क्षेत्र के अनेक गाॅवो में हरिहाट मेले को आयोजन किया जाता है।